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14 अगस्त 2012

देखिए माचिसों ने कैसे बयान की अपनी और आजाद हिंदुस्तान की कहानी!

शहर के एक प्राइवेट मैच बॉक्स म्यूजियम में स्वतंत्रता और उससे पहले के नायाब मैच बॉक्सेज का कलेक्शन उस वक्त के इतिहास को खुद ही बयां करता है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सिटी भास्कर के साथ मैच बॉक्सेज ने शेअर की अपनी और आजाद हिंदुस्तान की कहानी।

देश को आजादी दिलवाने वाले शहीदों और नेताओं को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हमेशा याद किया जाता है, लेकिन सभी को जानकर हैरानी होगी कि फ्रीडम मूवमेंट में मैच बॉक्स के तौर पर मेरा भी योगदान कुछ कम नहीं। आजादी से पहले मैं नेताओं के नारों को जन-जन तक पहुंचाने का एक माध्यम थी।

शायद इसलिए क्योंकि उस वक्त अभिव्यक्ति का अधिकार सीमित था तभी तो स्वतंत्रता सेनानियों के जज्बे की चिंगारी को आग मेरे जरिए भी बनाया गया। मुझे याद है बाल गंगाधर तिलक का नारा ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है’ किस तरह मेरे जरिए घर-घर तक पहुंचा था। वहीं जब स्वदेशी आंदोलन आया तो मेरा रूप भी स्वदेशी हो गया था।

स्वदेशी अपनाने के लिए हमने गांधीजी के चरखे और गांधी टोपी को भी तो प्रमोट किया था। वहीं हिंदू-मुस्लिम एकता को भी तो मैंने प्रसारित करवाया था, जिसमें राम और रहीम की दोस्ती है तो उर्दू और हिंदी की जुगलबंदी भी। अगर आप उस वक्त का मैच बॉक्स देखेंगे तो पाएंगे कि किस प्रकार लोग बिना किसी बैर के रहा करते थे।

शायद यही एकता थी जिसने भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाया। वो भी क्या दिन थे जब भारतीयों ने मुझे संदेशवाहक बना लिया और अपने संदेशों का प्रचार-प्रसार मेरे माध्यम से करने लगे। संदेश हिंदी और उर्दू में लिखे होते थे और भाषा का यह फायदा नेता उठाते थे। मुझमें जहां गांधी की अहिंसा की नीति थी तो आजादी से पहले भारत का नक्शा और ध्वज भी मौजूद है।

इसके साथ ही अशोक स्तंभ, गांधी आश्रम, गांधी के बंदरों के जरिए दी जाने वाली सीख के साथ-साथ स्वतंत्रता से पहले के हिंदुस्तान की कहानी को बखूबी बयान करते हैं। मैं फिलहाल गोविंद नगर स्थित आदिनाथ पारीक के मैच बॉक्स म्यूजियम में रहती हूं। आजादी को तो अब 65 साल हो जाएंगे। यही कामना करती हूं कि जिस तरह मेरे अंदर आजादी की कहानी समाई है वैसे ही आने वाली पीढ़ी सुख और समृद्धि की झलक मेरे अंदर पाए। इसी आशा के साथ जय हिंद।

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